हे राम के अनुयाइयो

हे राम के अनुयाइयो,
राम-राम निशिदिन जपते हो, पर साकार न होते राम,
राम तत्व को समझ न पाते, कैसे मिल सकते हैं राम
रामचंद्र के कृतित्व पर भी, कभी तो तनिक विचार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || १ ||

अपने मित्र परिजनों से, सदा प्रेम करते थे राम,
राजा के बेटे होकर भी, विनय मूर्ती दिखते थे राम,
विश्वामित्र के जनकल्याण यज्ञ में, होमे, जीवन का विचार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || २ ||

यदि न होती पूर्ण प्रतिज्ञा, जनकराज पाते आराम?
धनुष भंग कर सीताजी को, जो न अपनाते श्रीराम,
परशुराम की कथा है कहती, क्रोध को प्रेम से पार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ३ ||

गुरु आज्ञा से राजतिलक को, बेमन से तैयार थे राम,
पितृ वचन पूरे करने को, वन को चल दीने श्रीराम,
राजा और रंक दोनों स्थितियां , हंसकर के स्वीकार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ४ ||

आये भरत, मिला सिंहासन, पर नहीं मिले उन्हें श्रीराम,
ठोकर मार राज्य सत्ता को, भरत चले पाने को राम,
ओ भाई से लड़ने वालो, त्याग भरत का याद करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ५ ||

चौदह वर्ष वनों में विचरे, संतों से मिल भेंटे राम,
संगठित किया दीन - हीनों को, कष्ट सभी के मेटे राम,
कोल-किरात, निषाद, सबरी से किये प्रेम को याद करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ६ ||

सूर्पनखा बनी विश्व सुंदरी, पर क्या ललचाये थे राम,
पतिव्रता भर याद रहीं, पर नहीं याद पत्नीव्रत धारी राम,
स्त्री से यदि पतिव्रत चाहो, तो पत्नीव्रत को याद करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ७ ||

रावण, बाली से टकराए, न क्षणभर भी घबराए राम,
आतंक मिटाकर, शान्ति फैलाई, दुखियों को सुख दीन्हा राम,
हटे बुराई, रहे अच्छाई, ऐसा जीवन पथ स्वीकार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ८ ||

'मुंह में राम बगल में छुरी', ऐसा काम न चाहें राम,
अच्छाई की राह गहे बिन, पा न सकें जीवन में राम,
राम भजो नित्य खूब प्रेम से, पर रामत्व का भी विचार करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || ९ ||

राम समुच्चय अच्छाइयों के, उनकी अच्छाइयां याद करो,
उन्हें पुकारो किसी नाम से, पर जीवन में अच्छे काम करो,
विजयी होती सदा भलाई, इसी सत्य को याद करो |
राम का रामत्व समझकर, जीवन में अंगीकार करो || १० ||


माँ की चिट्ठी


प्रिय बेटे,
मैंने करोड़ों वर्षों से अपने आँचल की छाँव में मनुष्यता को पाला पोषा है | आदिमानव से लेकर आज तक के विकास क्रम की साक्षी, तुम्हारी यह माँ तुम्हे अपनी व्यथा कथा सुनाना चाहती है | बेटे, मैंने अनेक प्रलयकाल झेल कर तुम्हारे पूर्वजों को सदैव अपने आँचल में छुपाया तथा उन्हें नष्ट होने से बचाकर तुम्हारी पीढ़ी को आगे बढाया है, बरगी के पास नंदिकेश्वर तीर्थ के भूपपर्टीय भ्रंश, मंडला, रामनगर में करिया पहाड़ के ज्वालामुखीय अवशेष, सहस्त्रधारा की ग्रेनाईट की चट्टानें, लम्हेटाघाट की गोंडवाना लैंड चट्टानें, भेडाघाट की संगमरमरीय वादियाँ, डिंडोरी के घुघुवा जीवाश्म पार्क आदि ऐसे अनेक प्रमाण हैं जो प्रलय काल की उथल पुथल तथा उसमें मानव को सुरक्षित रखने की कथा कहते हैं | भयंकर दुर्भिक्षों के समय में भी मैंने अपने आँचल में कभी अकाल को फटकने तक नहीं दिया |

बेटे तुम समझ रहे हो न? मैं करोड़ो बच्चों की आश्रय दायिनी माँ एवं मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा हूँ | अमरकंटक से भरूच तक १३१२ किमी की यात्रा में मेरे दोनों ओर सतपुडा विन्ध्य पर्वत माला फैली हुई है जिनसे निकलने वाली लगभग २० सहायक नदियाँ मुझसे आकर मिलती हैं, इस प्रकार मैं एक विशाल भूभाग को धनधान्य से समृद्ध कर अनवरत बहती रहती हूँ | मेरी घाटी में बनाई गयी २९ वृहद, १३५ मध्यम ३००० लघु सिंचाई परियोजनाओं में मेरा वात्सल्य छलकता है | मेरे किनारों के वनों में लगभग १२०० प्रजातियों की वनस्पतियाँ, ८५ प्रजातियों के वन्य प्राणी, ३०० प्रजातियों के पक्षी तथा अनेक प्रजातियों के जलीय जीव, कीट सरीसर्प आदि विचरण करते फलते फूलते हैं | तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी जीवन दायिनी शक्ति को पहचान कर ही मुझे "माँ" कहा तथा मुझे प्राणपण से पूजित किया है | विश्व की मैं इकलौती नदी हूँ जिसकी लाखों लोग प्रतिवर्ष परिक्रमा करते हैं, यह तुम्हारे पूर्वजों की श्रद्धा ही थी जो लाखों कंठों से प्रतिदिन मेरी स्तुति के रूप में गई जाती है "त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे |"

परन्तु बेटे, करोड़ों लोगों की जीवन दायिनी तुम्हारी यह माँ आज संकट में है | तुम्हारे कुछ भाइयों ने मेरे किनारों के वनों की अंधाधुंध कटाई कर मुझे निर्वसन करना शुरू कर दिया है | यह इन हरे भरे वृक्षों का आवरण ही तो था जो मुझे सदानीरा बनाये हुए था परन्तु कुछ स्वार्थी लोग इन्ही वनों को काट काटकर मेरा गला घोंटना चाहते हैं | तुम्हारे गाँवों और शहरों के असंतुलित विकास ने शहरों का मोटापा बढ़ा दिया है जिससे शहरों की अंतहीन गन्दगी, गंदे नालों के रूप में मेरे अन्दर उड़ेली जा रही है | बेटे औद्योगिक विकास शहरीकरण की आवश्यकता से मैं इनकार नहीं करती, लेकिन प्रदूषित औद्योगिक अपशिष्ट तथा शहरी गन्दगी को बिना किसी ट्रीटमेंट के मेरे अन्दर डालकर मेरे अमृत तुल्य जल को ज़हरीला बना देना कहाँ की बुद्धिमानी है? अपने कछारों में लहलहाते खेतों को देखना तो मेरा सौभाग्य है, परन्तु जब इन खेतों में अंधाधुंध तरीकों से डाले गए उर्वरक कीटनाशक वर्षा जल के साथ बहकर मेरे अन्दर आते हैं तो मैं सिहर उठती हूँ | मेरे श्रद्धालु भक्त एक और तो माँ कहकर मेरी पूजा करते हैं, वहीँ दूसरी और फूल, बेलपत्र, हवन की राख, नारियल की जटा, साबुन, शेम्पू, तेल, अस्थि विसर्जन की राख, मुंडन के बाल, मृतक की सामग्री आदि मेरे अन्दर डालकर मुझे प्रदूषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं | गणेश दुर्गा की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं एवं उनमें लगे केमिकल रंग मुझे खतरनाक स्तर तक प्रदूषित कर देते हैं, मेरे किनारों के रहवासी, परिक्रमावासी व भिखारीगण जब मुझे मलमूत्र से प्रदूषित करते हैं तो मैं चीत्कार कर उठती हूँ | बेटे इतनी बर्बरता अत्याचार झेलकर तुम्हारी माँ अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही है | क्या तुम उसको बचाने के लिए कुछ करना चाहोगे?

बेटे, अपने पुरुषार्थ, पद, धन प्रतिभा का उपयोग अपने स्तर पर करके माँ की सेवा कर उसे प्रदूषण मुक्त बनाकर मात्रऋण से मुक्त होने का संकल्प अवश्य करोगे, ऐसा मेरा विश्वास है |

अपनी व्यथा कथा करुण क्रंदन के रूप में तुम तक प्रेषित कर रही हूँ, आशा है अपनी माँ को निराश नहीं करोगे |

- तुम्हारी व्यथित ह्रदय माँ
मेकल सुता नर्मदा

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सृजन सैनिकों के लिए प्रेरक प्रसंग

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