"अस मैं अधम सखा सुन , मोहू पर रघुबीर
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन, भरे बिलोचन नीर "||
इस दोहे को जब भी मैं गाता हूँ तब मेरा गला भर आता है. श्री हनुमान जी महाराज भी विभीषण को ऐसा सुनाते हुए खूब रोये थे परन्तु मेरा रोना हनुमान जी के रोने की वजह से नहीं स्वयं की वजह से होता है. मुझे नहीं मालूम की हनुमान जी महाराज अपने को अधम क्यों कह रहे थे क्योंकि मैं उनके अन्तरंग को नहीं जानता लेकिन मैं अपनी अधमता को भली भांति जानता हूँ और उसके उपरांत भी भगवान की जितनी कृपा वर्षा मेरे उपर हुई है उसको याद करके ही मैं रोता हूँ. प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ स्वयं ही अपने बारे मैं पूरी तरह जानता है दूसरा कोई नहीं. यही आत्मविश्लेषण करके मैं जान पाता हूँ कि मेरे जैसे अधम पर भी भगवान ने इतनी कृपा वर्षा की है कि मेरे पास आंसुओं के अलावा भला क्या रह जाता है.
मेरा जन्म जिस गाँव मैं हुआ उसमे तब प्राथमिक विद्यालय भी नहीं था. पक्की सड़क १० किमी. दूर थी, बिजली तो गाँव मैं तब पहुंची जब मैं २५ वर्ष का हो चुका था. कच्चे कीचड युक्त रास्तों से होकर दूसरे गाँव में पढने जाना, ११ वर्ष की उम्र से पढाई हेतु घर छोड़कर बाहर रहने लगना वह भी किसी छात्रावास मैं नहीं अपितु किराये की कच्ची कोठरी में, अपने हाथ से मिटटी के चूल्हे में खाना पकाना, अपने बर्तन और कपडे साफ़ करना वगैरह सब काम स्वयं करना होते थे. कृषक माता - पिता खेतों में मेहनत कर रोजी रोटी चलाते थे अतः जब भी समय मिलता उनके कार्यों में हाथ बटाता रहता था. कहने का तात्पर्य यह कि पढाई के लिए कोई अनुकूलता न होने पर भी हमेशा कक्षा में प्रथम आता था. जो पढता एक बार में याद हो जाता अपने विषय के अलावा अन्य विषयों को पढ़कर एक बार में समझने की क्षमता आखिर कहाँ से आई? क्या यह प्रभु कि अतिरिक्त कृपा वर्षा नहीं थी? हे प्रभु यदि इस पर भी में गद गद होकर कृतज्ञता ज्ञापित न करूँ तो मुझसा अभागा कौन होगा?
पढाई के सैकडों किस्से हैं जिनसे प्रभु की विशेष कृपा के अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं. एक बड़ी बात बताऊँ मैंने अपनी एम् . एस . सी . की डिग्री दो वर्ष के स्थान पर एक वर्ष में ही पूर्ण कर ली थी वह भी चार में से चार ओ . सी . जी. ऐ. (सभी विषयों में A ग्रेड ) और अपनी कक्षा में प्रथम स्थान के साथ और यह भी उन दिनों की बात है जब भोजन के अभाव में अनेक बार मात्र पानी पीकर डकार ले लेना सामान्य बात थी इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी दो वर्ष की डिग्री एक वर्ष में पूर्ण कर लेना क्या ईश्वरीय चमत्कार नहीं है ?
नौकरी की खोज करते समय तो ऐसा लगता था की किसी भी नौकरी के लिए परीक्षा देना ही चयन हो जाना है. जब मैंने अपनी वर्तमान नौकरी ज्वाइन की थी तब मेरे पास और नौकरियों के नियुक्ति पत्र भी थे. परमात्मा की कृपा वर्षा इस रूप में भला कितने लोगों को नसीब होती है?
जिन परिस्थितियों में पला बढा तथा जिन व्यक्तियों के संपर्क में रहा वे भले लोग तो थे ही, ज्यादातर सच्चे हृदय के कर्मठ किसान भी थे, उनकी साधन-हीनता एवं अज्ञानजनित समस्याग्रस्तता हृदय को कचोटती रहती थी इसीलिए २० वर्षों तक नौकरी करते हुए इतने अधिक लोगों के काम आ सका क्या यह ईश्वर की विशेष कृपा वर्षा नहीं है? एक और संयोग यदि धर्म पत्नी इतनी अच्छी सहयोगी व विशाल हृदया न होती तो क्या मैं किसी की सेवा कर पाता परन्तु प्रभु ने इतनी अच्छी पत्नी दी जिसने कभी किसी अतिथि को भगवान् से कम नहीं समझा ,राह चलते को भी बुलाकर भोजन कराया. ऐसी विशाल हृदया पत्नी क्या ईश्वर की कृपा से नहीं मिली? मेरे माता-पिता भाई व उनकी पत्नियाँ एवं उनके बच्चे इतने सहयोगी व सरल हृदय न होते तो क्या मैं किसी के काम आ पाता? इतने अच्छे परिजन सिर्फ ईश्वर कृपा से ही मिल सकते हैं ! मेरे बच्चे भी सहज ,आज्ञाकारी एवं मेधावी हैं तो यह भगवत कृपा नहीं तो और क्या है ?
भगवान ने सेवा के लिए दिल दिया तो पर्याप्त साधन भी दिए. उसी अनुपात में परिजन व मित्रों का सहयोग भी दिया . हे मेरे प्रभु तूने क्या नहीं दिया? मुझे तो कोई कमी नजर ही नहीं आती. इतना सब तूने मुझ जैसे एक गाँव के गंवार को बख्शा. हे परमात्मा इसे भला मैं कैसे भूल जाऊँ? हे ईश्वर मैं कृतकृत्य हूँ, तेरी कृपा का कोई पारावार नहीं है. बचपन से ही शरीर मैं समस्यायें रहीं! हर्निया की समस्या, फिर अपेंडिक्स की बीमारी, पेट की समस्या वगैरह तो लगी ही रही और वर्तमान में प्राणघातक बीमारी से जूझ रहा हूँ. इन सब के बावजूद ये समस्याएं कभी मेरी सेवा साधना मैं बाधा नहीं बनी तो यह ईश्वर कृपा से ही संभव हुआ. जीवन यदि १०० वर्ष भी मिला होता परन्तु किसी के काम न आ सका होता तो उस जीवन का मैं क्या करता? मेरे प्रभु तूने जितनी भी जिन्दगी दी उसमे ज्यादा से ज्यादा किसी के काम आ सका तो कम जीवन भी पर्याप्त है. हे परमात्मा तूने मुझे कीडे मकोडों की तरह सिर्फ अपने लिए जीने से बचाकर औरों की मदद करने का मौका दिया तो भी तेरा धन्यवाद न करूँ तो कृतघ्न न होऊंगा? हे परमात्मा न मैंने बहुत जप तप किया न बहुत दान पुण्य किया फिर भी तूने मेरा जीवन दूसरो के लिए इतना उपयोगी बनाया मैं भला क्यों न गदगद होकर गुनगुनाऊं -
"अस मैं अधम सखा सुन ,मोहू पर रघुबीर |
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन, भरे बिलोचन नीर ||"
(भावार्थ -हे मित्र सुनो ,मैं इतना अधम हूँ इस पर भी भगवन ने मेरे उपर कृपा करके मुझे सेवा का मौका दिया है ! ऐसा कहकर कपि (हनुमान जी ) गदगद हो गए तथा उनकी आँखों में आंसू भर आये.)