मेरी लाड़ली बेटी

कोमल हंसी, नन्हे कदम, तोतले से शब्द तुम्हारे
उल्लास से भरते थे मुझे कि मेरी बेटी हो तुम
शाम को जब ऑफिस से आता तो
दौड़ कर पैरों से लिपट जाती थी तुम
छुट्टी के दिन जब मैं अखबार पढ़ता
तब चुपके से आकर गोद में बैठ जाती थी तुम
जब घुमाने ले जाता, झूले झुलाता
तो खिलखिलाती हंसी से मन मोह लेती थी तुम
ये यादें हैं उन लम्हों की
जब मेरी नन्ही सी बेटी थी तुम
और लोगों के लिए बड़ी ,
पर मेरे लिए छोटी थी तुम
अब जब फ़ोन करता हूँ, तो इक आस सी होती है
तुम्हारी चहकती आवाज़ सुनने की प्यास सी होती है
आज मेरी बेटी रम गई है, इक नयी दुनिया, नए ख्वाबों में,
वह खो गई है कहीं,जो चहकती थी मेरी बाँहों में,
तुम जो पीछे छोड़ गई हो अपने बचपन की मीठी यादों को
आज भी उन पलों को जीता हूँ, याद करके तुम्हारी बातों को
एक ही दुआ है बस, कि सदा मुस्कुराना,
कैसी भी हो मुश्किल, कभी न डगमगाना,
हिचकना न बिलकुल, मेरे पास आना,
मैं तुम्हारा पिता
और वह परमपिता सदा तुम्हारे साथ है
हमारे लिए हर समय, वही प्यारी सी छोटी हो तुम,
मेरी लाड़ली बेटी हो तुम
मेरी लाड़ली बेटी हो तुम..

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सृजन सैनिकों के लिए प्रेरक प्रसंग

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