कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं होता

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं होता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो |

समाज में व्याप्त बुराइयों को कोसने में हम कभी पीछे नहीं रहते, लेकिन मात्र कोसने से बुराइयां समाप्त नहीं हो सकतीं | उनको उखाड़ फेंकने के लिए उनसे जूझना पड़ता है, परन्तु जब जूझने की बात आती है तो हम स्वयं आगे न आ पाने के पर्याप्त कारण खोज लेते हैं | हम सभी चाहते हैं की हमारे देश में सरदार भगत सिंह जैसे वीर शहीद पुनः जन्म लें, परन्तु हम यह भी चाहते हैं कि वे हमारा घर छोड़कर दूसरों के घरों में पैदा हों | अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि समाज में नैतिकता का राज्य हो, परन्तु इसके लिए प्रयास करने में ज़्यादातर लोग पीछे हो जाते हैं और चाहते हैं कि दूसरे ही सब कुछ ठीक कर देंगे | इसके लिए वे पर्याप्त बहाने भी गढ़ लेते हैं, जैसे कि कोई हमारी बात ही नहीं सुनता, सारा ज़माना ही खराब है, हम अकेले भला क्या कर सकते हैं? हम तो बुराइयों से बचे हुए हैं, फिर हमें क्या करना है? हम अच्छे लोग हैं, इन पचड़ों में फंसकर हम अपनी सुख शान्ति क्यों भंग करें? बुरे लोग ताकतवर होते हैं, उनसे टकराकर मुसीबत क्यों मोल लें? इत्यादि | परन्तु दूसरी ओर जो लोग बुराइयों से लड़ना चाहते हैं उनके पास इससे लड़ने के उतने ही कारण होते हैं | जैसे अपने पडोसी के घर में लगी आग को न बुझाकर भला हम अपना घर सुरक्षित कैसे बचा पायेंगे, परमात्मा ने हमें दूसरों से अधिक बुद्धि, बल, धन व सामर्थ्य प्रदान कि है तो उसका उपयोग हम दूसरों कि भलाई में न कर भला कृतघ्न क्यों कहलायें? इत्यादि | इस तरह का चिंतन एवं तदनुसार क्रियान्वयन करने वाले नरश्रेष्ठ शूरवीर यद्यपि विरले ही होते हैं, तथापि जो भी इस क्षेत्र में अग्रणी होते हैं, वे परमार्थ पथ में किये गए कार्यों से न केवल आत्म संतोष प्राप्त करते हैं, अपितु इतिहास पुरुष बनकर पीढ़ी दर पीढ़ी गौरव भी पाते हैं |

वास्तव में बुराई तभी तक ताकतवर दिखती है, जब तक उससे टकराया नहीं जाता, परन्तु जब थोड़े से भी भावनाशील प्राणवान लोग संगठित होकर उसके खिलाफ प्राणपण से जुट पड़ते हैं तो उसका विनाश किस प्रकार आसान हो जाता है, इस सन्दर्भ में एक प्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत है :-
भारतवर्ष का ह्रदय प्रदेश है मध्य प्रदेश और इस मध्य प्रदेश का ह्रदय स्थल है नरसिंहपुर जिला | वैसे तो इस जिले को माँ नर्मदा ने अपनी जलोढ़ व उपजाऊ मिटटी के द्वारा धनधान्य से संपन्न बनाया है, परन्तु यहाँ के निवासी भी देश के अन्य भागों में निवासरत करोड़ों अन्य ग्रामीण लोगों की तरह नशाखोरी, आपसी वैमनस्य, झगडा, फसाद व मुकदमेबाजी आदि के मकड़जाल में फंसकर दुःख दारिद्र्य को आमंत्रित करते जा रहे थे |

इन्ही नशे व कुरीतियों से ग्रसित ग्रामों में से एक ग्राम बिजौरा का कायाकल्प करने का संकल्प ग्राम के नवयुवकों द्वारा लिया गया | यह ग्राम पक्की सड़क से लगभग ६ किमी दूर बसा है तथा वर्षाकाल में शेष संसार से कट जाता है | बीमारी में मरीज़ को चार लोग अर्थी कि तरह खाट पर डालकर पक्की सड़क तक लाते थे | ग्राम में करीब ३० व्यक्ति अफीम व ब्राउन शुगर के नशेडी थे तथा लगभग ६०-७० व्यक्ति शराबी थे | कुछ लोग गांजा भांग का भी सेवन करते थे | इसके अलावा बीडी, तम्बाखू, गुटखा आदि का सेवन तो प्रायः प्रत्येक घर में होता था | नशे के साथ ही जुआ, सट्टा, झगडे, फसाद, मुकदमेबाजी आदि के प्रकोप से सम्पूर्ण ग्राम पीड़ित था | नवयुवक वर्ग नशे की गिरफ्त में आता जा रहा था | धन व मानव श्रम की बर्बादी इन दुर्व्यसनों में होने के कारण ग्राम की कृषि, असिंचित व कम उपजाऊ होकर रह गयी थी | ग्राम कि इस भयावह स्थिति के कारण कोई इस ग्राम में अपनी बेटी देने को तैयार नहीं था तथा ग्राम के अधिकाँश नवयुवक कुंवारे ही घूम रहे थे | इस तरह सम्पूर्ण ग्राम में दुःख दारिद्र्य व नैराश्य छाया हुआ था | इन परिस्थितियों में कुछ नवयुवकों ने गायत्री परिवार के साथ मिलकर इस ग्राम का कायाकल्प करने का संकल्प लिया |

नवम्बर २००४ में ग्राम के मंदिर में सदबुद्धि की अधिष्ठात्री भगवती गायत्री की प्राण - प्रतिष्ठा की गयी तथा गायत्री यज्ञ सम्पादित कर लोगों को संगठित होने हेतु भाव संवेदना जगाई गयी | तत्पश्चात ग्राम में युवा प्रज्ञा मंडल तथा महिला मंडल का गठन किया गया | महिला मंडल द्वारा जहां एक ओर छोटे छोटे द्वीपयज्ञों कि श्रंखला चलाकर नारी शक्ति का जागरण किया गया, वहीँ दूसरी ओर युवा प्रज्ञा मंडल द्वारा दैनिक प्रभात फेरी, साप्ताहिक संकीर्तन तथा नियमित नशा मुक्ति रैलियों का आयोजन किया गया | युवा प्रज्ञा मंडल का ग्राम रक्षा समिति के रूप में पुलिस विभाग में विधिवत पंजीयन कराया गया तथा समिति के सभी सदस्यों को पुलिस अधीक्षक द्वारा पुलिस मित्र की मान्यता देते हुए परिचय पत्र प्रदान किये गए | पुलिस अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों को श्रेय व सम्मान देकर उनका सहयोग प्राप्त किया गया | समिति द्वारा अफीम व ब्राउन शुगर के अत्यधिक एडिक्ट दस मरीजों को जबलपुर के सद्भाव नशामुक्ति केंद्र में एक माह तक उपचार हेतु भर्ती कराया गया | शेष सभी सामान्य नशेड़ियों को नशा छोड़ देने अथवा जेल भिजवा देने की समय-सीमा दी गयी | समिति के सदस्यों ने ग्राम में बनने वाली देशी शराब तथा बाहर से आने वाली विदेशी शराब, अफीम तथा ब्राउन शुगर का ग्राम में क्रय - विक्रय तथा सेवन करना पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया तथा अथक परिश्रम कर इस पर लगातार निगरानी रखी | कुछ नशामुक्त भाइयों ने न केवल पुलिस की मदद कर नशे के मुख्य व्यापारी को एक करोड़ बीस लाख रूपये की ब्राउन शुगर (नशा) सहित पकड़वा दिया अपितु इसका पूरा श्रेय पुलिस विभाग को दे दिया | इस तरह सम्पूर्ण क्षेत्र में नशे की आपूर्ति बंद हो गयी | समिति के अनुरोध पर ग्राम के अनेक भाई - बहिनों ने बीडी, तम्बाखू, गुटखा आदि का सेवन स्वेच्छा से बंद कर दिया और ग्राम न केवल पूर्णतः नशामुक्त हो गया अपितु आसपास के दर्जनों ग्रामों के लिए आदर्श बन गया |

एक वर्ष के अन्दर ही ग्राम में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिलने लगे | ग्राम के व्यक्तियों द्वारा प्रतिवर्ष नशे में लगभग चौदह लाख रूपये की राशि व्यय की जाती थी, जिसकी बचत होने से ग्राम में पंद्रह नए कुएं खोदे गए तथा दस बोरवेल किये गए | पच्चीस सिंचाई के मोटर पम्प क्रय किये गए | इस प्रकार लगभग आधी ज़मीन सिंचित हो गयी, जिससे वर्षा आधारित फसलों के स्थान पर गन्ना जैसी नगदी फसल पैदा की जाने लगी | मानव शक्ति जो कि नशे के अड्डों पर बर्बाद हो रही थी, खेतों में काम करने लगी | व्यस्तता बढ़ जाने से ग्राम में जुआ, सट्टा, झगडा, फसाद स्वतः ही समाप्त हो गए | ग्राम की संगठित इच्छा शक्ति को देखते हुए जनप्रतिनिधियों ने भी विकास की गंगा इस ग्राम की तरफ बहा दी और ग्राम को मुरम मार्ग के द्वारा पक्की सड़क से जोड़ दिया गया | ग्राम में सामुदायिक भवन, विद्यालय का नया कक्ष तथा सीमेंट सड़कों का निर्माण किया गया | स्वच्छ पेयजल हेतु हैण्डपम्प सुधार दिए गए | इस प्रकार ग्राम का कायाकल्प हो गया | वर्तमान में ग्रामवासियों ने आपसी सहयोग से पांच कमरे के एक सर्वसुविधायुक्त पक्के शाला भवन का निर्माण किया है जिसमें शीघ्र ही हाई स्कूल प्रारंभ होने जा रहा है |

उपरोक्त प्रसंग से यह सिद्ध होता है कि छोटे से संगठित प्रयास से ही बुराइयों कि रेत का महल भरभरा कर गिर जाता है | वास्तव में बुराइयों का अस्तित्व तभी तक है, जब तक कि अच्छे लोगों ने संगठित होकर उनके खिलाफ मोर्चा न खोल दिया हो | अतः अब समय आ गया है कि युगधर्म की मांग के अनुकूल अच्छे लोग संगठित हों तथा अपने आसपास सडांध मार रही बुराइयों की सफाई कर अपना व दूसरों का जीवन सुखी बनायें तथा पुण्य व श्रेय के भागीदार बनें |

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सृजन सैनिकों के लिए प्रेरक प्रसंग

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