ओ मेरे मन, ओ मेरे मन

जीवन पथ घनघोर गहन,
ओ मेरे मन, ओ मेरे मन.
घटा घुमड़ती काली काली,
झंझावात चले बलशाली,
फिर भी उड़ता जाये विहंग.
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

नैया जर्जर दूर किनारे,
पर मांझी भी कब दम हारे.
जिजीविषा की चाह गहन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

सिर्फ कर्म का तू अधिकारी,
फिर क्यों फल की चाह विचारी.
कर्म पथ का करो वरण,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

स्वारथ में तो सब जीते हैं,
परमारथ रस विरले पीते हैं,
परमारथ ही ईश भजन
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

जीवन बगिया है क्षणभंगुर
सत्कर्मो से बनती सुन्दर
सेवा कर कर खिला सुमन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

0 comments:

Post a Comment

Search This Blog

About this blog

सृजन सैनिकों के लिए प्रेरक प्रसंग

Followers