दीप ज्योति नमोस्तुते

दीप जलाते जीवन बीता, अब तो ऐसा दीप जले.
जीवन पथ हो परमारथमय , तब जो जीवन ज्योति जले.
परम पिता की सुन्दर बगिया, सुरभित बनी रहे हर पल,
सृष्टि के कण में फैले, उसका ही आलोक अखिल.
सेवा का पथ अपनाकर, माली बन यह बगिया सींचें,
उत्तम पथ पर बढ़ते जाएँ, कदम न फिर वापिस खीचें.
सेवामय हो जीवन सबका, अब तो ऐसी सीख मिले.
दीप जलाते जीवन बीता, अब तो ऐसा दीप जले.

स्वार्थ मार्ग की अंतिम परिणति होती है दुखदाई,
परमार्थ की क्षीण सी रेखा, भी होती सुखदाई.
परमार्थ ही सही मार्ग है, समझें और समझायें.
सृष्टि चलती परमार्थ से, परमार्थ पथ अपनाएं.
ज्ञान दीप ले सुपथ दिखाए, कोई तो ऐसा मीत मिले,
दीप जलाते जीवन बीता, अब तो ऐसा दीप जले.

युगधर्म ने आज पुकारा, अब तो आगे आयें
एक दूजे का हाथ थामकर, सेवा पथ अपनाएं.
अंधविश्वास, कुरीति, व्यसनों को जीवन से मार भगाएं.
सादा जीवन होता सुन्दर, जी कर यह दिखलायें.
पाखण्ड रहित विज्ञान परक हो, अब तो ऐसा धर्म मिले.
दीप जलाते जीवन बीता, अब तो ऐसा दीप जले.

समय नहीं, सामर्थ्य नहीं है, कभी न बोलें ऐसे बोल,
जीवन दाता सब कुछ देता, नहीं चुकाएं क्या कुछ मोल,
दौलत समय मिला जो हमको, है सब उसकी ही तो देन,
उसका दिया उसे देने में, क्यों होता नाहक बेचैन,
दीपों के उज्जवल प्रकाश में, आज नयी कोई राह मिले,
दीप जलाते जीवन बीता, अब तो ऐसा दीप जले.

" जीवेत शरदः शतं "

कर्म करते हुए , धर्म धरते हुए
विकर्मो से यथाशक्य बचते हुए,
सुकर्मो की शौर्य गाथा रचते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

वीणा के तारों को इतना कसें,
कि राग सुरताल होकर बजें.
तार ढीले किये तो हुई बेसुरी,
जोर ज्यादा लगाया तो टूटे लड़ी.
वर्जनाओं से बचकर, सरजते जियें,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

वही व्याप्त है सम्पूर्ण संसार में,
सारा चेतन , अचेतन पूर्ण है आप में.
भोग को त्याग कर भोग करते हुए,
'त्येन त्यक्तेन भुन्जीथा' को बरतते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

कर्म करने का ही हमें अधिकार हो,
कर्म फल जो मिले वही स्वीकार हो.
अपेक्षा न फल की कदाचित करें,
कर्म करने को बस हम तत्पर रहें.
'कर्मन्येवाधिकारस्ते' को बरतते जियें,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

यम नियम साधें, मन के लिए,
आसन प्राणायाम, तन के लिए.
ध्यान प्रत्याहार से एकाग्र होकर,
धारणा और समाधि का साधन करें.
अष्टांग योग से संवरते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

काम को, क्रोध को, लोभ और मोह को,
अंहकार, मद , राग और द्वेष को.
ज्ञानाग्नि में अर्पित करते रहें,
दया करुणा का वर्धन करते रहें.
प्रभु प्रेम में मग्न रहते हुए,
सौ शरद तक जियें , सौ बरस तक जियें.

नन्ही सी मुनिया मेरी

मेरे घर की चहल पहल,
मेरे आँगन की खुशहाली.
जीवन की संगीत सुधा सी,
मनोकामना मतवाली.
मेरे जीवन की पीयूष स्रोत,
नन्ही सी मुनिया मेरी.

सदा चहकती बुलबुल जैसी,
उछल कूद करती सरिता सी.
हाथ बटाकर अपनी माँ का,
भार घटाती दुहिता सी.
रूठ जाए तो प्यारी लगती,
अलबेली सी मुनिया मेरी.

चिंता करती माँ लगती है,
प्रश्न पूछती दादी सी.
पापा जल्दी आना ,कहकर ,
रहती बाट जोहती सी.
वनमाला नन्हे प्रश्नों की,
अथक गूंथती मुनिया मेरी.

मौन रहे तो जैसे कहती,
बाबुल मैं तो शबनम सी.
दूर न करना , भुला न देना,
बसूँ हृदय के अन्दर ही.
मेरे जीवन की कविता बन,
मुझको हुलसाती मुनिया मेरी.

ओ मेरे मन, ओ मेरे मन

जीवन पथ घनघोर गहन,
ओ मेरे मन, ओ मेरे मन.
घटा घुमड़ती काली काली,
झंझावात चले बलशाली,
फिर भी उड़ता जाये विहंग.
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

नैया जर्जर दूर किनारे,
पर मांझी भी कब दम हारे.
जिजीविषा की चाह गहन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

सिर्फ कर्म का तू अधिकारी,
फिर क्यों फल की चाह विचारी.
कर्म पथ का करो वरण,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

स्वारथ में तो सब जीते हैं,
परमारथ रस विरले पीते हैं,
परमारथ ही ईश भजन
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

जीवन बगिया है क्षणभंगुर
सत्कर्मो से बनती सुन्दर
सेवा कर कर खिला सुमन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.

टुकटुक मैच कभी न खेलूँ

टुकटुक मैच कभी न खेलूँ, खुलकर वनडे खेलूँ यार
कैच अगर होना ही हो, तो हो बाउंड्री के पार.
मारूं तो बस चौके छक्के , एक एक रन भी लेना क्या
आउट तो इक दिन होना ही है, थके थके से खेलना क्या.
एक एक रन में समय गवां कर न कहलाऊँ क्रिकेट का भार ,
टुकटुक मैच.....

अगली गेंद का क्या भरोसा , बस इसी गेंद को खेलूँ मैं ,
जमकर खेलूँ इसी गेंद को, पहुचाऊं बाउंड्री में .
इस पल का ही जीवन है, इस पल का ही करूँ विचार,
टुकटुक मैच.....

खेलूँ तो बस सचिन सा खेलूँ, यही कामना है मन में,
जितना भी हो वह अच्छा हो , यही लक्ष्य हो जीवन में.
लीक लीक कायर चलते हैं , लीक छोड़ कर करूँ विचार,
टुकटुक मैच......

कछुए के दो शतक व्यर्थ हैं,खरगोश की एक चौकडी महान,
मर मर जीवन नहीं गवाऊं , उत्सवमय जीना आसान.
अवसर एक दिया है प्रभु ने, इस पर क्यों न करूँ विचार,
टुकटुक मैच......

जीवन देन प्रभु की अनुपम , नहीं किसी का यह अधिकार,
जितना मिला वही हो सार्थक, जीवन क्रिकेट का यही है सार.
जीवन बगिया हंसकर सींचू,पतझड़ हो या वसंत बहार,
टुकटुक मैच कभी न खेलूँ, खुलकर वन डे खेलूँ यार...

बाल हठ और वृद्ध हठ

पिता ने पुत्र को पुस्तक में चित्र दिखाते हुए कहा 'घ' घोडे का. पुत्र ने पूछा, क्या यह घोड़ा है पापा?
हाँ बेटा, यह घोड़ा है पिता ने कहा.
अच्छा? यही घोड़ा है? हाँ बेटा, यही घोड़ा है.
पापा यह घोड़ा क्यों है?
क्योंकि इसकी पीठ पर बैठ सकते हैं बेटा.
तो पापा हम भी घोडे की पीठ पर बैठेंगे.
अच्छा बेटा, ज़रूर बैठना, मगर अभी आप छोटे हो बेटा. बडे होने पर बैठना.
तो पापा हम छोटे घोडे की पीठ पर बैठेंगे.
अच्छा बेटा ज़रूर बैठना.पर पापा , हमको तो अभी घोडे की पीठ पर बैठना है.
पर यह तो घोडे का चित्र है बेटा, आप इसकी पीठ पर कैसे बैठ सकते हैं?
नहीं पापा हमें तो अभी घोडे पर बैठना है, अभी बैठना है बस. हम जब तक घोडे पर नहीं बैठेंगे, आगे नहीं पढेंगे, बस.
अच्छा बेटा, आप इस घोडे पर बैठिये, देखिये आपके पापा भी घोड़ा बन सकते हैं.
अच्छा पापा.
और पुत्र बडी शान से पिता की पीठ पर बैठकर घोडे की सवारी करने लगा.

बाल हठ पूरी हुई.

समय गुज़रा. पिता बूढा हो गया और पुत्र जवान.

पिता ने पुत्र से पूछा, सुना है बेटा आजकल बिना पेट्रोल से चलने वाली मोपेड आ गयी है?
हाँ पापा.
तो क्या वह बिजली से चलती है?
हाँ पापा, मगर उससे आपको क्या लेना देना है? पुत्र जोर से बोला.
बेटा मैं सोच रहा था की इतने कम खर्च में चलने वाली मोपेड आ गयी है तो...
आप तो पापा फालतू सोचते रहते हैं. माना की आपके घुटनो में दर्द रहता है, परन्तु आपको चलना ही कितना है? महीने में एक बार पेंशन लेने जाना है, दिन में एक बार मंदिर जाना है , एक बार सब्जी व किराना लेने जाना है या कभी रिक्शा नहीं आया तो बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाना है. क्या आप इतना भी पैदल नहीं चल सकते?
नहीं बेटा यह बात नहीं है,मैं तो...
तो क्या बात है?खाली बैठे बैठे आपके दिमाग में फितूर भर गया है और मैं आपको साफ़ साफ़ बता दूं मेरे पास इतने फालतू पैसे नहीं हैं.यदि आपने सुन लिया हो तो अब मुझे काम करने दो. पुत्र को नाराज़ हुआ जानकार पिता ने बात बदलते हुए कहा, नाराज़ मत हो बेटा. मैं तो कह रहा था की बहू "किट्टी पार्टियों" में रिक्शे से जाती है तो तेरे स्टेटस के हिसाब से तो अच्छा नहीं लगता. उसके लिए अगर मोपेड..
तो ऐसा पहले क्यों नहीं बताया आपने! खांमखां मेरा दिमाग गरम कर दिया. मैं कल ही वह मोपेड ला दूंगा.
और वृद्ध हठ जीत कर भी हार गयी.

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