जीवन पथ घनघोर गहन,
ओ मेरे मन, ओ मेरे मन.
घटा घुमड़ती काली काली,
झंझावात चले बलशाली,
फिर भी उड़ता जाये विहंग.
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.
नैया जर्जर दूर किनारे,
पर मांझी भी कब दम हारे.
जिजीविषा की चाह गहन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.
सिर्फ कर्म का तू अधिकारी,
फिर क्यों फल की चाह विचारी.
कर्म पथ का करो वरण,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.
स्वारथ में तो सब जीते हैं,
परमारथ रस विरले पीते हैं,
परमारथ ही ईश भजन
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.
जीवन बगिया है क्षणभंगुर
सत्कर्मो से बनती सुन्दर
सेवा कर कर खिला सुमन,
ओ मेरे मन , ओ मेरे मन.
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