टुकटुक मैच कभी न खेलूँ
Posted by
Rameshwar Patel
at
Saturday, January 9, 2010
टुकटुक मैच कभी न खेलूँ, खुलकर वनडे खेलूँ यार
कैच अगर होना ही हो, तो हो बाउंड्री के पार.
मारूं तो बस चौके छक्के , एक एक रन भी लेना क्या
आउट तो इक दिन होना ही है, थके थके से खेलना क्या.
एक एक रन में समय गवां कर न कहलाऊँ क्रिकेट का भार ,
टुकटुक मैच.....
अगली गेंद का क्या भरोसा , बस इसी गेंद को खेलूँ मैं ,
जमकर खेलूँ इसी गेंद को, पहुचाऊं बाउंड्री में .
इस पल का ही जीवन है, इस पल का ही करूँ विचार,
टुकटुक मैच.....
खेलूँ तो बस सचिन सा खेलूँ, यही कामना है मन में,
जितना भी हो वह अच्छा हो , यही लक्ष्य हो जीवन में.
लीक लीक कायर चलते हैं , लीक छोड़ कर करूँ विचार,
टुकटुक मैच......
कछुए के दो शतक व्यर्थ हैं,खरगोश की एक चौकडी महान,
मर मर जीवन नहीं गवाऊं , उत्सवमय जीना आसान.
अवसर एक दिया है प्रभु ने, इस पर क्यों न करूँ विचार,
टुकटुक मैच......
जीवन देन प्रभु की अनुपम , नहीं किसी का यह अधिकार,
जितना मिला वही हो सार्थक, जीवन क्रिकेट का यही है सार.
जीवन बगिया हंसकर सींचू,पतझड़ हो या वसंत बहार,
टुकटुक मैच कभी न खेलूँ, खुलकर वन डे खेलूँ यार...
0 comments:
Post a Comment