जब मेरी कोई इच्छा शेष नहीं,
जब मेरा कोई अहंकार नहीं ,
तब बस तेरी ही इच्छा पूर्ण हो , ओ मेरे प्रभु!
तेरी हाँ में हाँ , तेरी ना में ना,
अब तो राजी हूँ बस , रजा में तेरी ,
अहंकार बस अकड़ता रहा बहुत देर तक,
अब तो तेरी ही इच्छा पूर्ण हो ओ मेरे प्रभु !
अणु में भी तू , विभु में भी तू ,
जगती के कण कण में बस तू ही तू ,
जब सर्वत्र व्याप्त है बस एक तू ,
तब तेरी ही इच्छा पूर्ण हो ओ मेरे प्रभु !!
लगा आनंद बरसने अविरल ,
रोम रोम होने लगा विव्हल ,
वाणी है गदगद मन प्रफुल्लित ,
अब तो बस तेरी ही इच्छा पूर्ण हो ओ मेरे प्रभु !!
२५/१०/०८
2 comments:
जब उसकी इच्छा मे अपनी इच्छा मिला दी जाती है, अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया जाता है फिर हर ओर आनन्द ही आनन्द होता है।
वंदना जी, आपकी सत्यानुभूति के लिए साधुवाद |
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