"नमामि देवी नर्मदे "


सौंदर्य की नदी नर्मदा , मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा , जीवन में उत्सव की प्रतीक नर्मदा , अनगढ़ पत्थरों को नर्मदेश्वर बनाने वाली नर्मदा , ऋषि - महर्षियों की तपःस्थली नर्मदा और ना जाने कितने अलंकारों से विभूषित नर्मदा , वास्तव में एक नदी ही नहीं है अपितु आदि मानव से लेकर मशीनी मानव तक लाखों मनुष्यों , पशुओं , पौधों , जीव जंतुओं की जीवन दायिनी माँ भी है !

अप्रतिम सौंदर्य की धनी , घनघोर वनों, पर्वत पहाड़ों को चीरकर उछलती - कूदती नर्मदा , पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली एकमात्र बड़ी नदी है ! प्रसिद्ध साहित्यकार श्री अमृतलाल बेगड़ ने इसे संस्कृतियों की जननी के रूप में देखा है ! इसके किनारों पर बसने वाले गोंड , भील , बैगा, कोरकू , ढीमर आदि बनवासी लोगों की सांस्कृतिक धरोहर को अनुभूत करने के लिए नर्मदा की परिक्रमा की जाती है !

मध्यप्रदेश के शहडोल जले में स्थित मैकल पर्वत श्रेणी की अमरकंटक चोटी से निकलकर गुजरात राज्य में खम्भात की खाड़ी में समुद्र से मिलने वाली नर्मदा नदी की लम्बाई लगभग १३२१ कि . मी . है ! परन्तु मध्य भारत के हजारों श्रद्धालु इस नदी की पूरी लम्बाई में परिक्रमा करते हैं !! इन्हें यहाँ परकम्मा वासी (परिक्रमा वासी ) कहा जाता है । ये परकम्मा वासी माँ नर्मदा की आरती करते हुए गा उठते हैं "निकली जल धार जोर , पर्वत पहाड़ फोड़ , दुष्ट दलन गर्व तोड़ , प्रकटी महारानी " जय जय जगदम्बे मातु नर्मदा भवानी "!!!

नर्मदा संघर्षमय जीवन की प्रतीक है ! पूर्व से पश्चिम की ओर ढाल के विपरीत बहते हुए इसने अनेक स्थानों पर पहाड़ों को काटा है तथा अनेक झरने बनाये हैं ! कपिल धारा के पास अमरकंटक चोटी से सैकड़ों फूट नीचे छलांग लगाती हुई नन्ही पतली सी धार दूध के झरने के सामान दिखाई देती है अतः इसे दूध धारा भी कहते हैं! मंडला के पास बंजर नदी के संगम के नीचे सहस्त्र धारा प्रपात में उछलती कूदती सी आगे चलकर नर्मदा जबलपुर के पास " धुआंधार " नामक प्रसिद्ध प्रपात बनाती है ! यहीं भेडाघाट नामक स्थान पर नर्मदा ने संगमरमरी सुरम्य चट्टानों को जिस खूबसूरती से काटा है वह देखने लायक है ! यहाँ चांदनी रात में नौका विहार जग प्रसिद्ध है ! नरसिंहपुर जिले में सांकल घाट पर हिरन नदी के संगम के पास , ब्रहमाण घाट में, होशंगाबाद के सेठानी घाट में एवं महेश्वर के घाटों पर ठहरी हुई सी बहती नर्मदा मदमस्त दिखाई देती है !

जबलपुर से प्रारंभ होने वाली नर्मदा की घाटी गुजरात राज्य की सीमा तक लगभग ३२० कि . मी . लम्बे कछारों का निर्माण करती है ! इसके दोनों ओर विन्ध्याचल तथा सतपुड़ा की पर्वत मालाएं इसके साथ साथ पूर्व से पश्चिम कि ओर चलती हैं ! इन पर्वत मालाओं की उपत्तिकायें प्रागैतिहासिक काल से लेकर अभी तक मानव की शरण स्थली हैं । आदिमानव की क्रीड़ा स्थली "भीमबैठका" एवं "पुतलीखोह " इन्ही उपत्तिकाओं में स्थित हैं !

वैसे तो नर्मदा का हर कंकड़ शंकर कहा जाता है परन्तु ओम्कारेश्वर के पास धार कुण्डी प्रपात में पाए जाने वाले शिवलिंग नर्मदेश्वर के रूप में सर्वत्र पूजे जाते हैं ! उछल कूद करते हुए बहना एवं कलरव करना नर्मदा की अपनी विशेषता है इसीलिए रव यानी शोर करने के कारण महाभारतकार ने इसे "रेवा " का नाम दिया है !

वर्तमान में जबलपुर के पास बरगी, खंडवा के पास इंदिरा सागर व् महेश्वर एवं मध्य प्रदेश गुजरात की सीमा पर सरदार सरोवर परियोजनाओं के माध्यम से नर्मदा को बांधकर हजारों एकड़ जमीन को सिंचित किया जा रहा है । सरदार सरोवर से कच्छ के चिर प्यासे रण तक नर्मदा जल पहुचाया जा चुका है। भारत बर्ष की अन्य नदियों की तुलना में इस नदी का जल अभी भी स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित है तथा अभी भी इसके किनारे तपोवनो की तरह प्रतीत होते हैं । तभी तो इस नदी को माँ क रूप में पूजने वाले लाखों कंठ प्रतिदिन गाते हैं,

"त्वदीय पाद पंकजम , नमामि देवी नर्मदे "


०१/०८ /०७

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सृजन सैनिकों के लिए प्रेरक प्रसंग

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